उत्कर्ष नव ...
Saturday, September 12, 2009
प्रत्याशा...
आज निकल जाने को बिकल मन
यह तम गहन संकीर्ण रहन
निशा ध्रुव यह नरक दिशा
मन में सुचिता का वसन रहन
नव रागिनी छेड़कर नव बाट पर
नव सृष्टी कर नव ललाट पर
तन मन की शक्ति अखिल, साथ कर
चिर प्यास बुझाने नव घाट पर
पंकज बोरा
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