Thursday, September 17, 2009

नाजुक-सा ख्वाब

इक नाजुक से ख्वाब को इस दिल के अंजुमन में सहेजे हैं हम

हर रोज़ हर पल उसके टूटने का भय बना रहता है


-पंकज बोरा

Saturday, September 12, 2009

प्रत्याशा...

आज निकल जाने को बिकल मन

यह तम गहन संकीर्ण रहन

निशा ध्रुव यह नरक दिशा

मन में सुचिता का वसन रहन



नव रागिनी छेड़कर नव बाट पर

नव सृष्टी कर नव ललाट पर

तन मन की शक्ति अखिल, साथ कर

चिर प्यास बुझाने नव घाट पर



पंकज बोरा

Friday, September 11, 2009

आकांक्षा...



जग में प्रीति की ज्योति जला दू मैं ...
जग में प्रीति की ज्योति जला दू मैं ...


पुण्य धरा पर सुन्दरतम
प्रेम प्रकाश फैला दू मैं
जन-मन-हिय में अनुपम
स्वर्गिक आभास दिला दू मैं

जन- जन जो शोषित, पीड़ित
पंक दलित, हर सुविधा रहित
आशा दीप उस दिल में जगाकर
जीवन प्रीति का राग दू मैं


प्रीति के हर रूप हर रागिनी में
जीवन ध्येय की श्वेत रोशिनी में
जीवन का नैसर्ग दिखाकर
राह में उत्साह उसके भर दू मैं


जग में प्रीति की ज्योति जला दू मैं...
जग में प्रीति की ज्योति जला दू मैं...



- पंकज बोरा

अनभिज्ञ मन

किस सत्य से अनभिज्ञ मन

किस ख्वाब में निर्लिप्त तन

किस सोच को सच में बदलने के लिए

नित रोज़ उर में यह उफ़न

- पंकज बोरा

शुष्क रुदन






बिन अश्रु यह शुष्क रुदन

तरु-ताल छाव में ग्रीष्म बदन

उर को चित्त से तटस्थ
किये

क्यों आज यह बेकल मन?



चित्त की चिर चंचलता

अवसन्न तरु-सी स्थायी

तप्त- पवन के हस्तक्षेप से

सहज क्रोध से मुसकाई




दीर्घ विकलता में लघु राहत

और अधिक करती आहत

परतंत्र क्रोध है अड़चन में

यह शुष्क रुदन किस बाबत?




प्रिय! दो फूटकर रोने की स्वतंत्रता

म्लान मन अश्रु जल से धुलने दो

संयोग-वियोग के मध्यस्थ से

किसी एक पक्ष में धकेल दो .
- पंकज बोरा

Thursday, September 10, 2009

उन्नयन...

विह्वल ह्रदय आज निराशा में,

डूबता अहं सर्व अश्रु जलधारा में,

अवर करुण चेतना पर उत्साहित,

एक नव उन्नयन प्रत्याशा में ...

- पंकज बोरा